Edited By Sunita sarangal, Updated: 14 Apr, 2025 03:39 PM
जालंधर(अनिल पाहवा): लाल-पीले, नीले-हरे रंग सदा ही बच्चों की कमजोरी रहे हैं। बचपन में खिलौनों से लेकर चटाक-चमकदार रंग के कपड़े बच्चों को खूब लुभाते हैं लेकिन अगर इस नए दौर को देखें तो ये रंग बच्चों की जान के दुश्मन बनने लगे हैं। हम लोग अकसर लाड-प्यार में बच्चों को रंग-बिरंगी कैंडीज, जैली देकर लुभाने की कोशिश करते हैं, लेकिन जो रिसर्च सामने आ रहे हैं, उनके अनुसार इन रंग-बिरंगी साफ्ट जैली व कैंडीज के कारण सेहत पर बुरा असर पड़ रहा है। ये रंग जो बच्चों की जान के दुश्मन बन गए हैं, वे कैंडी व जैली में ही नहीं, बल्कि जूस, चाकलेट, साफ्ट ड्रिंक्स, डिब्बाबंद भोजन, चिप्स, आइस्क्रीम, जैम तथा कुछ स्नैक्स में भी इस्तेमाल हो रहे हैं, जिनको बच्चे खूब शौक से खाते पीते हैं।
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इन उत्पादों को ज्यादा चटक बनाने के लिए इन रंगों का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है। इन कैमिकल को बेहद खतरनाक बताया जा रहा है, जिसके कारण बच्चों में कई तरह की बीमारियां होने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। देश भर में डाक्टरों के पास इन कैमिकल्स का इस्तेमाल होने के कारण प्रभावित हो रहे पेशेंट्स की संख्या तेजी से बढ़ रही है, जिनमें अधिकतर गिनती बच्चों की है। अन्य समस्याओं के साथ-साथ इन कैमिकल युक्त रंगों के कारण बच्चों में एलर्जी का प्रभाव भी बढ़ रहा है।
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कैमिकल वाले रंगों के कारण बच्चों में पैदा हो रहे गंभीर रोग
इन लाल-पीले-नीले रंगों से तैयार खाद्य पदार्थ जिनमें जैली तथा कैंडीज शामिल हैं। ये बच्चों की फेवरेट बन रही हैं, लेकिन इसके बुरे प्रभाव सामने आने लगे हैं, जो बेहद चिंता का विषय है। जानकारी के अनुसार डॉक्टरों के पास जो केस आ रहे हैं, उनमें मुख्यतः बच्चों में चिड़चिड़ापन, एलर्जी, माइग्रेन, अस्थमा, डायरिया, हाइपर एक्टिविटी के लक्षण पाए जा रहे हैं। कुछ मामलों में तो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के भी लक्षण पाए गए हैं। इस कारण डाक्टरों की तरफ से इन रंग बिरंगे कैमिकल के इस्तेमाल को लेकर लोगों को आगाह किया जा रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि बच्चों का शरीर और मस्तिष्क विकास की अवस्था में होता है, इसलिए इन हानिकारक कैमिकल का असर बच्चों पर ज्यादा पड़ता है।
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बच्चों के डी.एन.ए. को नुक्सान पहुंचा रहा सी रैड-40 कलर
अलग-अलग स्टडीज के अनुसार बच्चों के लिए तैयार की जा रही कैंडीज, जैली तथा कुछ अन्य खाद्य पदार्थों में मुख्यतः लाल-पीला तथा नीले रंग प्रयोग किया जा रहा है, जिनके शरीर पर अलग-अलग प्रभाव पड़ते हैं। शोध के अनुसार सी रैड-40, जिसे अलूरा रैड या एफ.डी. भी कहा जाता है, एक सिंथैटिक खाद्य रंग है, जिसके ज्यादा इस्तेमाल से ध्यान की कमी, चिड़चिड़ापन, एलर्जी, माइग्रेन तथा कैंसर जैसे बीमारियों के लक्षण देखे गए हैं। इसके अलावा कुछ शोध बताते हैं कि रैड-40 रंग आंत में सूजन का भी एक बड़ा कारण है। यहां तक कि यह रंग डी.एन.ए. को भी नुक्सान पहुंचाता है।
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यैलो-5 के कारण बच्चों में बढ़ रहे एलर्जी के मामले
कई कैंडीज में इस्तेमाल होने वाला यैलो-5, जिसे टाट्राजीन भी कहा जाता है, बच्चों के लिए एलर्जी का बड़ा कारण बन रहा है। इसके ज्यादा प्रयोग के कारण खुजली, सांस लेने में तकलीफ, सिरदर्द, थकान या पेट की समस्याओं के लिए इस रंग को जिम्मेदार माना जाता है। पशुओं पर किए गए शोध और अध्ययन में यह बात सामने आई है कि टाट्राजीन डी.एऩ.ए. को नुकसान पहुंचाता है। इसके अलावा इसमें कैंसर जैसे खतरनाक रोग की भी संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसके अलावा पीले रंग के खाद्य पदार्थ बनाने के लिए यैलो 6 (सनसैट यैलो) का इस्तेमाल भी कैंडीज बनाने में हो रहा है। इस कैमिकल युक्त रंग के कारण बच्चों में पेट से संबंधित रोगों के साथ-साथ अस्थमा तथा नींद की समस्याएं भी सामने आ रही हैं।
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ब्रिलिएंट ब्ल्यू कैमिकल के कारण यूरिन तक का बदल रहा रंग
ब्ल्यू-1, जिसे ब्रिलिएंट ब्ल्यू भी कहा जाता है, का ज्यादा इस्तेमाल बच्चों के लिए नुकसान का सौदा साबित हो रहा है। इसके कारण कई बच्चों में एलर्जी की समस्या देखी गई है, जबकि कई मामलों में तो त्वचा तथा यूरिन का रंग भी नीला देखा गया है, जिससे संबंधित कई बच्चे डाक्टर के पास इलाज करवा रहे हैं। इसके अलावा यह रंग बच्चों के अंदर उदासी की भावना पैदा होने का मुख्य कारण बताया जा रहा है। इसके साथ ही ब्ल्यू 2, जिसे इंडिगोटीन भी कहा जाता है, का इस्तेमाल कैंडीज वगैरह में हो रहा है और यह खतरे का कारण बन रहा है।
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फूड कलर्स से प्रभावित बच्चों की बढ़ रही तादाद
बच्चों के रोगों के माहिर डॉक्टर का कहना है कि जैली, साफ्ट कैंडीज इत्यादि में जो टाक्सिक रंग इस्तेमाल हो रहे हैं, वे बेहद खतरनाक हैं। पिछले कुछ समय से इनके इस्तेमाल से होने वाली समस्याओं को लक्षण बच्चों में बढ़ गए हैं। खास कर कॉटन कैंडीज के इस्तेमाल से बच्चों में यूरिन का रंग बदलने के कई केस पिछले दिनों में उनके पास आए हैं। ऐसे उत्पाद बच्चों के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं और इनका प्रयोग बंद किया जाना चाहिए, क्योंकि ये सभी कैमिकल रंग बच्चों के स्वास्थय पर बुरा प्रभाव डाल रहे हैं।
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