Edited By VANSH Sharma, Updated: 27 Dec, 2025 07:34 PM

सोशल मीडिया पर इन दिनों एक खबर तेजी से वायरल हो रही है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि 1 अप्रैल 2026 से इनकम टैक्स विभाग आम लोगों के निजी सोशल मीडिया अकाउंट्स और ई-मेल की जांच कर सकेगा।
जम्मू-कश्मीर डेस्क: सोशल मीडिया पर इन दिनों एक खबर तेजी से वायरल हो रही है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि 1 अप्रैल 2026 से इनकम टैक्स विभाग आम लोगों के निजी सोशल मीडिया अकाउंट्स और ई-मेल की जांच कर सकेगा। इस दावे के बाद कई टैक्सपेयर्स में चिंता और भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है।
हालांकि, सरकार की आधिकारिक फैक्ट-चेक एजेंसी प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) ने इस खबर को पूरी तरह गलत और भ्रामक करार दिया है। PIB ने स्पष्ट किया है कि ऐसा कोई नया नियम लागू नहीं किया गया है और इनकम टैक्स विभाग को आम नागरिकों के निजी डिजिटल अकाउंट्स की सीधी या रैंडम जांच का कोई अधिकार नहीं दिया गया है।
वायरल पोस्ट्स में यह भी कहा जा रहा था कि टैक्स चोरी रोकने के लिए इनकम टैक्स विभाग को फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और ई-मेल अकाउंट्स तक सीधी पहुंच मिल जाएगी। PIB ने इन सभी दावों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि इस तरह की बातें पूरी तरह अफवाह हैं।
सूत्रों के अनुसार, इनकम टैक्स एक्ट, 2025 की धारा 247 के तहत विभाग को केवल तलाशी (सर्च) और सर्वे जैसी कार्रवाई का अधिकार है। डिजिटल डेटा की जांच भी सिर्फ विशेष परिस्थितियों में ही की जा सकती है, जैसे कि बड़ी टैक्स चोरी या काले धन से जुड़े मामलों में और वह भी तब, जब विभाग के पास ठोस सबूत मौजूद हों।
नए कानून में टैक्सपेयर्स की निजता की सुरक्षा पर भी खास ध्यान दिया गया है। इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि बिना वजह या रैंडम तरीके से किसी के डिजिटल डेटा की जांच नहीं की जाएगी। किसी भी कार्रवाई से पहले अधिकारियों के पास “रीजन टू बिलीव” यानी पुख्ता कारण होना जरूरी है और शक का आधार लिखित रूप में दर्ज करना अनिवार्य होगा, ताकि नागरिकों की प्राइवेसी बनी रहे।
सरकार और PIB दोनों ने यह साफ संदेश दिया है कि आम और ईमानदार टैक्सपेयर्स को घबराने की कोई जरूरत नहीं है। जो लोग समय पर और सही तरीके से टैक्स रिटर्न फाइल करते हैं, अपनी पूरी आय की जानकारी देते हैं और टैक्स कानूनों का पालन करते हैं, उनके लिए इन नियमों का कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ेगा। कुल मिलाकर, डिजिटल डेटा की जांच केवल संदिग्ध और गंभीर मामलों तक ही सीमित रहेगी।
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