कश्मीर के युवाओं को Criminal बना रही यह वजह, रिपोर्ट में हुआ होश उड़ा देने वाला खुलासा

Edited By Sunita sarangal, Updated: 28 Oct, 2024 02:25 PM

jammu kashmir youth drugs addicted

समाज में गाहे-बगाहे इस प्रकार के अपराधों की खबरों का आना एक आम बात हो चुकी है।

जम्मू डेस्क: जम्मू-कश्मीर विशेष रूप से कश्मीर घाटी में युवा मादक पदार्थों के चंगुल में फंस रहे हैं जिसने चिकित्सकों, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों एवं सामाजिक कार्यकर्त्ताओं की चर्चाओं को एक नए विषय पर सोचने पर विवश कर दिया है।

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बुद्धिजीवियों का मानना है कि मादक पदार्थों की लत युवाओं को अपराध की ओर ले जाती है जिसमें मामला छोटी-मोटी चोरी से लेकर झपटमारी, सेंधमारी, मारपीट एवं कई बार हत्या तक भी चला जाता है। मामला चाहे कुछ भी हो, इन अपराधों के पीछे का मुख्य एवं इकलौता कारण नशीले पदार्थों के सेवन के लिए होने वाले खर्च को पूरा करने के लिए रुपए-पैसे की तंगी ही है। जानकारों के अनुसार इस प्रकार के अपराधों की शुरूआत अपने ही घरों से की गई पैसे एवं छोटी-मोटी उपभोगता वस्तुओं की चोरी से होती है तथा एक बार हाथ खुल जाने पर देखते ही देखते नशे की गिरफ्त में फंसा युवा एक घोषित अपराधी बन जाता है।

जम्मू-कश्मीर में 10 लाख लोग हैं नशीले पदार्थों के शिकार

समाज में गाहे-बगाहे इस प्रकार के अपराधों की खबरों का आना एक आम बात हो चुकी है। इस प्रकार की खबरों के बीच हाल ही में कुछ ऐसी खबरें भी सामने आ रही हैं जो वाकई चिंतित करने वाली हैं। वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में लगभग 10 लाख लोग नशीली दवाओं के दुरुपयोग के शिकार हैं। यह कोई अनुमान के आधार पर नहीं बल्कि केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा कुछ समय पूर्व दिया गया आंकड़ा है।

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आंकड़ों के अनुसार कम से कम 1.44 लाख नशीली दवाओं का सेवन करने वाले लोग भांग का सेवन कर रहे हैं, जबकि 5.34 लाख पुरुषों और 8 हजार महिलाओं में ओपियोइड की लत प्रचलित है। इसके अलावा 1.6 लाख पुरुष एवं 8 हजार महिलाएं दर्द निवारक (पेन किलर) दवाओं के लगातर इस्तेमाल के आदी हो चुके हैं। इसमें स्वास्थ्य विशेषज्ञों को संदेह है कि ये आंकड़े वास्तविक संख्या से बहुत कम हो सकते हैं क्योंकि कई दवा उपयोगकर्त्ता सामाजिक दबाव के डर से खुलकर बात करने समेत चिकित्सा देखभाल लेने से कतराते हैं।

कश्मीर में नशीली दवाओं का दुरुपयोग खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। आंकड़े बताते हैं कि इससे पीड़ित युवाओं की संख्या में अब तक का उच्चतम स्तर है। एक रिपोर्ट के अनुसार युवा वर्ग का एक बड़ा हिस्सा नशीली दवाओं के उपयोग में लिप्त है जिसमें पुरुष और महिला दोनों शामिल हैं। केवल शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित न रहकर यह बीमारी ग्रामीण क्षेत्रों को भी अपनी गिरफ्त में लेकर पहले से ही चुनौतीपूर्ण सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को और भी बदतर बना रही है।

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अनिश्चितता का वातावरण बढ़ाता है तनाव

कश्मीर घाटी में दशकों से चली आ रही उथल-पुथल और संघर्ष ने अनिश्चितता और तनाव का माहौल पैदा कर दिया है। युवा लोग विशेष रूप से हिंसा एवं अस्थिरता के मनोवैज्ञानिक प्रभावों के प्रति संवेदनशील हैं, जिसके कारण कई लोग आसानी से उपलब्ध और सुलभ नशीली दवाओं के माध्यम से इन समस्याओं से छुटकारा पाने की कोशिश करते हैं। वहीं प्रशासनिक व्यवस्था द्वारा समय-समय पर आर्थिक स्थिरता के लिए रोजगार के अवसरों को आसान बनाने संबंधी किए जाने वाले प्रयासों के बावजूद भी कश्मीर में आर्थिक परिदृश्य निराशाजनक है, जो उच्च बेरोजगारी दरों के अलावा युवाओं के लिए सीमित अवसरों के साथ अपेक्षाओं और वास्तविकताओं के तालमेल कायम नहीं कर पा रहा है। यही आर्थिक संभावनाओं की कमी कई युवाओं को अपनी कुंठाओं और निराशा से निपटने के साधन के रूप में मादक द्रव्यों के सेवन की ओर ले जाती है।

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सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारण

पारंपरिक पारिवारिक ढांचे के टूटने और सांस्कृतिक मूल्यों के क्षरण ने भी नशीली दवाओं के दुरुपयोग में वृद्धि में योगदान दिया है। साथियों का दबाव और दूसरों के साथ घुलने-मिलने की चाहत युवाओं को नशीली दवाओं के साथ प्रयोग करने के लिए प्रेरित करती है जिसका परिणाम नशे की लत के रूप में सामने आता है।

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पड़ोसी देश दे रहा ‘नार्को-आतंकवाद’ को बढ़ावा

पाकिस्तान कश्मीर एवं इस रास्ते से शेष भारत तक अवैध रूप से मादक पदार्थों की तस्करी के माध्यम से नार्को-आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है। जानकारों के अनुसार घाटी के पाकिस्तान के साथ लगते अग्रिम नियंत्रण रेखा क्षेत्र में कई युवा नशीली दवाओं के व्यापारियों के लिए कैरियर के तौर पर काम करते हैं जो नशीले पदार्थों की खेपों को पीर पंजाल समेत अन्य मार्गों द्वारा श्रीनमर, जम्मू एवं देश के अन्य भागों तक पहुंचाते हैं।

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