Edited By Neetu Bala, Updated: 02 Jun, 2024 03:54 PM
खान का सपना है कि वह अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम का विस्तार करके अधिक से अधिक आदिवासी लड़कियों तक पहुंचे और स्वरोजगार के अवसरों को बढ़ावा दे।
जम्मू कश्मीर : बांदीपोरा जिले के अरागाम गांव की 27 वर्षीय आदिवासी महिला शाहिदा खानम जम्मू-कश्मीर में गुज्जर समुदाय की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए आशा की किरण बनकर उभरी हैं।
शाहिदा खानम ने बताया कि अपने संग्रहालय में पारंपरिक चीजों को संरक्षित करने के अलावा वह स्थानीय आदिवासी लड़कियों को सोजनी, कढ़ाई, बुनाई, सिलाई, डिजाइनिंग और पारंपरिक आभूषण बनाने का औपचारिक प्रशिक्षण भी देती हैं।
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पिछले दस महीनों में, उनके केंद्र ने 30 से अधिक लड़कियों को सशक्त बनाया है, न केवल उनकी सांस्कृतिक जड़ों को संरक्षित किया है बल्कि उन्हें आजीविका कमाने में भी सक्षम बनाया है।
खान का सपना है कि वह अपने प्रशिक्षण कार्यक्रम का विस्तार करके अधिक से अधिक आदिवासी लड़कियों तक पहुंचे और स्वरोजगार के अवसरों को बढ़ावा दे।
केंद्र न केवल पारंपरिक शिल्प सिखाता है बल्कि फैशन डिजाइनिंग जैसे आधुनिक तत्वों को भी शामिल करता है, जिससे ये लड़कियां अपनी विरासत को संजोते हुए समकालीन रुझानों के अनुकूल ढल सकती हैं।
उन्होंने जिले का पहला आदिवासी संग्रहालय स्थापित किया है, जिसमें गुज्जर और बकरवाल समुदायों की कलाकृतियां और परम्पराएं प्रदर्शित की गई हैं। शाहिदा के संग्रहालय संग्रह में पारंपरिक आभूषण, सिक्के, कपड़े, मिट्टी के बर्तन और अन्य वस्तुएं शामिल हैं, जो पैतृक जीवन शैली की झलक प्रदान करती हैं, उनकी पहल सिर्फ वस्तुओं को प्रदर्शित करने से कहीं आगे जाती है।
वह स्थानीय आदिवासी लड़कियों के लिए कढ़ाई, सिलाई और आभूषण बनाने के कौशल विकास कार्यक्रम भी चलाती हैं। यह न केवल इन युवा महिलाओं को सशक्त बनाता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि ये पारम्परिक शिल्प भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंचे। खानम का सांस्कृतिक संरक्षण और महिला सशक्तिकरण के प्रति समर्पण वास्तव में प्रेरणादायक है। उनका संग्रहालय गुज्जर और बकरवाल समुदायों के लिए अपनी जड़ों से जुड़ने और अपनी अनूठी सांस्कृतिक पहचान का जश्न मनाने के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान के रूप में कार्य करता है।