खास खबर: हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है प्राचीन मंदिर कामेश्वर, जानें क्या है इतिहास

Edited By Neetu Bala, Updated: 04 Aug, 2024 08:06 PM

special news the ancient kameshwar temple history

कस्बे अखनूर में ऐतिहासिक मंदिर कामेश्वर जिसका इतिहास द्वापर काल से जुड़ा हुआ है, हजारों श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा और आस्था का केंद्र है।

अखनूर: कस्बे अखनूर में ऐतिहासिक मंदिर कामेश्वर जिसका इतिहास द्वापर काल से जुड़ा हुआ है, हजारों श्रद्धालुओं के लिए श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। यहां महाशिवरात्रि पर्व पर विशाल मेला लगता है और श्रावण माह में यहां पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। द्वापर युग के इस ऐतिहासिक मंदिर का एक विशेष महत्व है, यहां भगवान शिवशंकर के शिवलिंग के साथ कामेश्वर महाराज (खाटूश्यामजी) तथा उनके घोड़े की पिंडियों पर जल अभिषेक करने के साथ पूजा-अर्चना की जाती है।

इस ऐतिहासिक व प्राचीन कामेश्वर मंदिर के इतिहास की जानकारी देते हुए श्री 1008 महामंडलेश्वर रामेश्वर दास ने बताया कि द्वापर युग में जब कुरुक्षेत्र में पांडवों और कौरवों का युद्ध चल रहा था तो राजा बवरीक जो एक योद्धा था, कश्मीर से चलकर कुरूक्षेत्र में युद्ध देखने के लिए आया करता था। एक दिन भगवान श्रीकृष्ण जी की राजा बवरीक पर नजर पड़ी तो भगवान श्रीकृष्ण अंर्तजामी थे वह सब कुछ जानते थे। तो युद्ध के बीच भगवान श्रीकृष्ण ने राजा बवरीक से कहा कि आप किस तरफ से युद्ध लड़ना चाहते हैं तो राजा बवरीक ने कहा कि जो युद्ध हार रहा होगा। तो भगवान श्रीकृष्ण ने राजा बवरीक से कहा कि आप में युद्ध कौशल की ऐसी शक्ति है तो राजा बवरीक ने कहा कि मैं एक ही बाण से सबको मार सकता हूं।

ऐसी युद्ध कौशलता देखने के इच्छुक भगवान श्रीकृष्ण जी ने इसका प्रमाण दिखाने को कहा तो राजा बवरीक ने कहा कि वह एक ही बाण से इस विशाल वृक्ष के एक-एक पत्ते को भेद सकता है तो भगवान श्रीकृष्ण जी ने एक पत्ता अपने पांव के नीचे छुपा लिया। राजा बवरीक का बाण वृक्ष के हरेक पत्ते को भेदता हुआ भगवान श्रीकृष्ण के पांव के पास रूक गया। तब भगवान श्रीकृष्ण ने युद्ध कौशल देखकर राजा बवरीक से कहा कि यौद्धा ही हो या दान भी करते हो तो राजा बवरीक ने भगवान श्रीकृष्ण को पहचानते हुए कहा कि प्रभु आप जान मांग लें तो मैं जान दे दूंगा। तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि मैं आपका सिर दान में मांगता हूं तो राजा बवरीक ने कहा कि मैं इस युद्ध को देखने का अभिलाषी हूं। तब भगवान श्रीकृष्ण ने राजा बवरीक को वरदान दिया कि तेरा सिर पूरा युद्ध देखेगा और कलियुग में जो भी तेरी पूजा करेगा उसको मनवांछित फल प्राप्त होगा।

महामंडलेश्वर रामेश्वर दास ने कहा कि राजा बवरीक का धड घोड़े पर सवार होकर वापस आ रहा था तो इसी स्थान पर एक तालाब के किनारे कपड़े धो रही महिलाओं ने शव घोड़े पर जाते देखा तथा शोर मचाने पर राजा बवरीक का शव एवं घोड़ा इसी स्थान में समा गया। उस समय राजा ने यहां पर मंदिर का निर्माण करवाया और उस द्वापर युग से ही इस कामेश्वर मंदिर के नाम पर विख्यात भगवान शिवशंकर के साथ राजा बवरीक और उनके घोडे़ की पिंडियों की पूजा की जा रही है।

रामेश्वर दास ने बताया कि प्राचीन कामेश्वर मंदिर में पहली पिंडी भगवान कामेश्वर (खाटूश्यामजी जी का धड़) दूसरी पिंडी भगवान शंकर जी की और तीसरी पिंडी कामेश्वर भगवान के घोड़े की है, जिन पर श्रद्धालु जलाभिषेक कर अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

श्रावण माह के सोमवार में लगता है श्रद्धालुओं का तांता

कस्बे के ऐतिहासिक मंदिर कामेश्वर में श्रावण मास के हर सोमवार को प्रात:काल से ही श्रद्धालुओं का तांता लगना शुरू हो जाता है, जिसमें कस्बे सहित आसपास के क्षेत्रों के हजारों शिवभक्त मंदिर में आकर शिवलिंग पर अक्षत, पुष्प, दूध, पंचगव्य सहित जल अभिषेक कर भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर प्रवंधन द्वारा महिलाओं की अलग लाइन लगाने के साथ आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पूरी व्यवस्था की जाती है।

कामेश्वर मंदिर में आने वाले श्रद्धालु करते हैं नवग्रहों की पूजा

अखनूर कस्बे के प्राचीन कामेश्वर मंदिर में भगवान शिवशंकर मंदिर के परिसर में नवग्रह का मंदिर शिवभक्तों के लिए विशेष महात्म्य है। मंदिर परिसर में पीपल वटवृक्ष के नीचे सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि व राहु-केतु की स्थापित की गई मूर्तियों की मंदिर में आने वाले श्रद्धालु विशेष पूजा-अर्चना करने के साथ भगवान शिवशंकर व कामेश्वर महाराज पर जल अभिषेक कर अपने आपको धन्य महसूस करते हैं।

बुड्ढा अमरनाथ यात्रा का पहला पड़ाव होता है कामेश्वर मंदिर

कस्बे के प्राचीन एवं ऐतिहासिक कामेश्वर मंदिर में हर साल होने वाली बुड्ढा अमरनाथ यात्रा में श्रद्धालुओं का पहला पड़ाव होता है। यहां कस्बे के प्रशासनिक अधिकारी, राजनीतिक संगठनों, संत महात्माओं, बजरंग दल के कार्यकर्ताओं व समाजसेवी लोगों द्वारा बुड्ढा अमरनाथ यात्रिओं का भव्य स्वागत करने के साथ उनके जलपान की व्यवस्था की जाती है। यह सिलसिला पिछले कई वर्षों से जारी है।


 

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