Edited By Sunita sarangal, Updated: 31 Aug, 2024 12:15 PM
पी.डी.पी. में भी विरोधी स्वर उठ चुके हैं और कुछ नेता पहले ही पार्टी का दामन छोड़ चुके हैं।
जम्मू: दूसरे चरण के चुनाव की घोषणा के साथ ही जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक दलों की गतिविधियां तेज हो गई हैं। उम्मीदवारों की घोषणा के साथ ही पार्टियां विरोधी लहर से जूझना शुरू हो गई हैं। ऐसे में विधानसभा चुनावों में निर्दलीय उम्मीदवार जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद हो रहे विधानसभा चुनावों में सियासी पारे को बढ़ाएंगे। पार्टी के फैसले से नाखुश नेताओं ने विरोध का बिगुल बजाते हुए चुनाव मैदान में उतरने तक की घोषणा कर दी है।
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जम्मू-कश्मीर के सबसे बड़े क्षेत्रीय दल नेशनल कांफ्रेंस में भी टिकटों के आबंटन को लेकर पार्टी पदाधिकारियों में नाराजगी है। जिन उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिला या कांग्रेस के साथ गठबंधन के चलते टिकट कांग्रेस प्रत्याशी को दे दी गई, उससे नाराज टिकट के इच्छुक निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में कूदने वाले हैं।
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विश्व की सबसे बड़ी पार्टी कहलाने वाली भारतीय जनता पार्टी भी विरोधी लहर से जूझ रही है। केंद्रीय नेताओं को मैदान में उतारा गया है ताकि नाराज वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्त्ताओं को मनाया जा सके। कई लोगों ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र देना शुरू कर दिया है। इनमें ऐसे नेता भी शामिल हैं जिन्होंने युवा अवस्था में लाठियां खाईं और आज पार्टी जम्मू-कश्मीर में सत्ता तक पहुंची। ऐसे में अगर पुराने कार्यकर्त्ता या नेता मैदान में उतरते हैं तो भाजपा के उम्मीदवारों को चुनाव में मुश्किल झेलनी पड़ सकती है।
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पी.डी.पी. में भी विरोधी स्वर उठ चुके हैं और कुछ नेता पहले ही पार्टी का दामन छोड़ चुके हैं। हालांकि पी.डी.पी. कुछ नेताओं को वापस बुलाने में कामयाब रही परन्तु अभी भी वह भीतरघात से जूझ रही है। कांग्रेस के नेकां के साथ गठबंधन के बाद इच्छुक युवा उम्मीदवारों की आस पर पानी फिर गया है। जो युवा सोच रहे थे कि पार्टी टिकट मिलने पर अपना परचम लहराएंगे, परन्तु सीटों के बंटवारे में टिकट नेकां के हाथ चले जाने पर अब मन मसोसने के सिवाय उनके पास कुछ नहीं है। कइयों को दूसरे स्थान से चुनाव लड़ने के लिए कहा जा रहा है परन्तु वहां उन्हें हार का सामना करना पड़ सकता है।
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पार्टी आलाकमान के फैसले से कार्यकर्त्ता और नेताओं को समझ नहीं आ रहा कि क्या करें? अगर पार्टी खुल कर मैदान में उतरती तो आंकड़ा बढ़ सकता था। इसी तरह छोटे दलों को भी विरोधी लहर से दो-चार होना पड़ रहा है। दरअसल नेकां, पी.डी.पी. का जम्मू के मैदानी इलाकों में आधार कम हुआ है और कश्मीर में कांग्रेस का जबकि भाजपा कमल खिलाने की आस लगाए बैठी है। ऐसे में एक-दूसरे पर दलों को निर्भर होना पड़ रहा है जिसके चलते भीतरघात बढ़ गई है।
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