Edited By Neetu Bala, Updated: 25 Aug, 2025 07:28 PM

सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि युवाओं को बचाने के लिए एक व्यापक समाधान खोजना आवश्यक है।
श्रीनगर : जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा एजैंसियां युवाओं, विशेष रूप से छात्राओं को कथित तौर पर कट्टरपंथ की ओर धकेलने संबंधी चिंताओं के कारण कई शैक्षणिक संस्थानों, खासकर निजी विद्यालयों पर निगरानी बढ़ा रही हैं। अधिकारियों ने यहां यह जानकारी दी। सुरक्षा एजैंसियों को मादक पदार्थों के कथित व्यापक इस्तेमाल को लेकर भी इस तरह की चिंताएं हैं, क्योंकि कुछ निजी विद्यालयों में विशेष रूप से ये समस्या व्याप्त है।
घटनाक्रम से अवगत अधिकारियों ने कुछ निजी विद्यालयों से आ रही परेशान करने वाली इन सूचनाओं के बारे में बताया कि किस तरह अधिकारियों को चुपचाप युवाओं को कट्टरपंथ की ओर धकेलने के खिलाफ चेतावनी देनी पड़ी। यह पहल जमीनी स्तर पर चरमपंथी विचारों के प्रसार के खिलाफ लड़ने के एक बड़े प्रयास का हिस्सा है। सुरक्षा अधिकारियों के अलावा इस तरह से कट्टरपंथ के प्रसार ने कुछ पूर्व अलगाववादी समूहों को भी चौंका दिया है, क्योंकि उन्हें चिंता है कि नियंत्रण रेखा (एल.ओ.सी.) के दूसरी ओर से होने वाली यह धार्मिक चरमपंथ की एक और लहर घाटी की सदियों पुरानी ‘सूफी' परंपरा को अस्थिर कर देगी।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि कुछ संस्थानों और ‘अनौपचारिक' मदरसों में अब भी कट्टरपंथ पनप रहा है। सूत्रों के अनुसार, घाटी की युवतियों में अचानक कट्टरता देखी जा रही है, क्योंकि खुफिया रिपोर्ट से पता चला है कि कट्टरपंथी मौलवी युवाओं को इस्लाम की एक कठोर परिभाषा सिखा रहे हैं, जो सूफी संतों व ऋषियों की दरगाहों पर जाने और चादर चढ़ाने जैसी पारंपरिक कश्मीरी प्रथाओं को अस्वीकार करती है। इन रीति-रिवाजों की इस्लामी शिक्षाओं के उल्लंघन के रूप में निंदा की जा रही है और यह प्रवृत्ति उन पूर्व अलगाववादियों को चिंतित कर रही है, जिन्होंने अपना नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर यह बात कही।
खुफिया रिपोर्ट से पता चला कि घाटी में युवतियों में कट्टरपंथ का अचानक उभार हुआ है। आतंकवादियों द्वारा सोशल मीडिया के दुरुपयोग ने इस मुद्दे को और गंभीर बना दिया है, जिससे जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा के लिए नई चुनौतियां उत्पन्न हो गई हैं। घाटी की शिक्षा प्रणाली को अपूरणीय क्षति पहुंची है, जो बार-बार विद्यार्थियों को भविष्य की सही राह प्रदान करने में असमर्थ साबित हुई है।
तीन दशकों तक आतंकवाद और भू-राजनीतिक उथल-पुथल ने कश्मीर के युवाओं के मनोविज्ञान को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिसकी कमजोरी अक्सर पथराव की घटनाओं का विश्लेषण करने पर भी स्पष्ट होती है। अधिकारियों ने बताया कि अस्थिरता के अलावा पारंपरिक शैक्षणिक संस्थानों की तुलना में अनियमित मदरसों का अनियंत्रित विस्तार बढ़ रहा है और आतंकवादी समूह इसका फायदा उठा रहे हैं तथा धर्म को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर दुष्प्रचार फैला रहे हैं।
पाकिस्तान समर्थक भावना को बढ़ावा देने वाले कुछ लोग फर्जी ‘पीड़ितों' की तस्वीरों का इस्तेमाल कर रहे हैं, जिनमें रोष और बदला लेने के लिए निर्दोषों के खिलाफ अपराधों को दर्शाया गया है।
इसी तरह का एक और खतरा भी कश्मीर के युवाओं पर मंडरा रहा है और यह खतरा है मादक पदार्थ, जो कुछ विद्यालयों में एक गंभीर समस्या के रूप में देखा गया है। सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि युवाओं को बचाने और क्षेत्र में दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए वैचारिक शिक्षा व मादक पदार्थों की लत के दोहरे खतरे से निपटने के लिए एक व्यापक समाधान खोजना आवश्यक है।
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