Omar Abdullah के लिए आसान नहीं होगी गठबंधन की राह, राजनीतिक क्षमता का देना होगा इम्तेहान

Edited By Neetu Bala, Updated: 12 Oct, 2024 08:06 PM

the path of alliance will not be easy for omar abdullah

उमर अब्दुल्ला की अब राजनीतिक क्षमता का भी इम्तेहान होगा कि वह गठबंधन के सहयोगियों और केंद्र सरकार के बीच कैसे तालमेल कायम करते हैं।

जम्मू: जम्मू-कश्मीर यू.टी. के पहले मुख्यमंत्री का पदभार संभालने वाले नेशनल कांफ्रेस के उपप्रधान उमर अब्दुल्ला के लिए गठबंधन सरकार की राह आसान नहीं है। गठबंधन में शामिल कांग्रेस और निर्दलियों के साथ तालमेल कायम रखना चुनौती भरा होगा। जम्मू-कश्मीर यू.टी. में नए कानून के तहत कामकाज करना है और इसमें सहयोगी दलों के समर्थन की अधिक जरूरत पड़ेगी। ऐसे में उमर अब्दुल्ला की अब राजनीतिक क्षमता का भी इम्तेहान होगा कि वह गठबंधन के सहयोगियों और केंद्र सरकार के बीच कैसे तालमेल कायम करते हैं।

ये भी पढ़ेंः  Power Cut: काम जल्दी निपटा लें, जम्मू के इन इलाकों में कल बिजली रहेगी बंद

वर्ष 2010 में जब उमर अब्दुल्ला ने कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार संभाली तो उस समय कांग्रेस के 17 विधायक थे और नेकां की 28 सीटें लेकर सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी। पीडीपी की 21 सीटें और भाजपा के 11 उम्मीदवार विजयी हुए थे। यह चुनाव अमरनाथ भूमि आंदोलन के बाद हुए जिसमें नेकां अपने पुराने पदर्शन को बरकरार रख सकी और पीडीपी ने भी सुधार किया। लेकिन कांग्रेस की सीटें कम हो गईं। नेकां ने तब भी कांग्रेस के साथ गठबंधन किया ताकि सदन में बहुमत साबित करते समय कोई अड़चन न आए। छंब से तीसरी बार विधायक बनने वाले तारा चंद को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन सत्ता संभालते ही उमर अब्दुल्ला को कश्मीर में उपद्रवों को झेलना पड़ा, जिसमें 120 से अधिक नौजवान प्रदर्शनों में मारे गए। आखिरकार सेना को हस्तक्षेप कर कानून व्यवस्था को संभालना पड़ा। हालात को संभालने के लिए एस.एम.एस. तक पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उस समय उमर अब्दुल्ला पूर्व की स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय विदेश राज्यमंत्री का अनुभव लेकर लौटे थे। बड़े विपक्षी दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी ने कोई अवसर नहीं छोड़ा, जब उमर अब्दुल्ला की सरकार को घेरा जा सके। उस समय ऐसे घटनाक्रम हुए जिनको लेकर नेकां-कांग्रेस सरकार विपक्ष के निशाने पर आती रही।

ये भी पढ़ेंः  जम्मू-कश्मीर में उत्साह के साथ मनाया गया दशहरा उत्सव

वर्ष 2024 के विधानसभा चुनावों में नेकां-कांग्रेस ने पहले ही गठबंधन कर लिया और अब सरकार बनाने जा रहे हैं। लेकिन कांग्रेस विधायकों ने सरकार को लिखित में अपना समर्थन देने में ही चार दिन का समय लगा दिया, जिससे सरकार गठन को लेकर उमर की चिंता बढ़ा दी। कांग्रेस ने अपने विधायक दल का नेता चुनने का जिम्मा भी पार्टी हाईकमान पर सौंपा है और अभी किन विधायकों को गठबंधन में मंत्री बनाया जाना है, उस पर कोई विचार नहीं हुआ है। ऐसे में अगर उमर अब्दुल्ला 16 अक्तूबर बुधवार को शपथ ग्रहण करते हैं तो उनके साथ 10 मंत्री भी शपथ लेंगे जिनको लेकर मंथन चल रहा है। पार्टी के वरष्ठि नेताओं के साथ युवा विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल करना भी उमर के लिए आसान नहीं होगा। अलबत्ता उनके इस काम में डॉ फारूक अब्दुल्ला का समयोग मिलेगा क्योंकि उनके सामने कोई बगावती सुर नहीं निकाल पाएगा। नेकां को समर्थन देने वाले नर्दिलीय विधायकों को भी खुश रखना उमर अब्दुल्ला के लिए अहम होगा। नेकां के पास 42 विधायक हैं और कांग्रेस के 6 विधायक मिला कर बहुमत के लिए 48 का आंकड़ा तो है, परन्तु वोटिंग के समय किसी ने क्रास वोट किया तो सरकार खतरे में पड़ जाएगी। ऐसे में नर्दिलीयों को साधना भी उमर की राजनीतिक क्षमता को दर्शाएगा कि वे कैसे मैनेज करते हैं। मंत्रिमंडल में शामिल होने वाले मंत्रियों के चयन से ही सरकार की भावी कामकाज की रूपरेखा तय होगी।

अपने शहर की खबरें Whatsapp पर पढ़ने के लिए Click Here

Related Story

Trending Topics

Afghanistan

134/10

20.0

India

181/8

20.0

India win by 47 runs

RR 6.70
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!