भयंकर बाढ़ से मचेगी भारी तबाही, CWC की रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा

Edited By Sunita sarangal, Updated: 04 Nov, 2024 12:53 PM

glacial lake outburst floods risk increasing in india

रिपोर्ट के अनुसार सतही क्षेत्र में 33.7 प्रतिशत विस्तार के साथ भारत में झीलों में और भी अधिक वृद्धि हुई है।

जम्मू डेस्क: जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के कारण हिमालय (Himalaya) क्षेत्र में ग्लेशियल झीलों (Glacial lakes) और अन्य जल निकायों के क्षेत्रफल में 2011 से 2024 तक 10.81 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई जो ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ (जी.एल.ओ.एफ.) (GLOF) के बढ़ते जोखिम का सीधा संकेत है। केंद्रीय जल आयोग (सी.डब्ल्यू.सी.) (CWC) की रिपोर्ट में हुआ यह खुलासा पर्यावरणविदों एवं जानकारों के लिए एक चिंता का विषय बना हुआ है।

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रिपोर्ट के अनुसार सतही क्षेत्र में 33.7 प्रतिशत विस्तार के साथ भारत में झीलों में और भी अधिक वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2011 के दौरान भारत के भीतर ग्लेशियल झीलों का कुल सूची क्षेत्र 1962 हैक्टेयर था जो वर्ष 2024 की तीसरी तिमाही तक बढ़कर 2623 हैक्टेयर हो गया है जो इनके क्षेत्रफल में 33.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है। इसके अलावा भारत में 67 झीलों के सतही क्षेत्र में 40 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि देखी गई जिन्हें आशंकित जी.एल.ओ.एफ. के लिए उच्च जोखिम वाली श्रेणी में रखा गया है। इसके लिए पूरे देश को इस भयंकर बाढ़ की स्थिति से बचाने के लिए उचित उपाय उठाने की जरूरत है।

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लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश में हुआ सबसे अधिक विस्तार जी.एल.ओ.एफ. के बढ़ते जोखिम समेत गहन निगरानी और आपदा की तैयारी की आवश्यकता को दर्शाता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियल झीलों एवं अन्य जल निकायों का कुल क्षेत्रफल 2011 के 5 लाख 33 हजार 401 हैक्टेयर से 2024 में 10.81 प्रतिशत बढ़कर 5 लाख 91 हजार 108 हैक्टेयर हो गया है। जानकारों के अनुसार इन झीलों के तेजी से विस्तार का कारण क्षेत्र में बढ़ते तापमान के चलते ग्लेशियरों (Glaciers) का तेजी से पिघलना है।

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रिपोर्ट में कहा गया है कि भौतिक रूप से पर्वतीय ग्लेशियरों का सिकुड़ना और ग्लेशियल झीलों का विस्तार ‘ग्लोबल वार्मिंग’ (Global Warming) के सबसे तीव्र एवं गतिशील प्रभावों में से एक हैं इसलिए इस तरह के पर्यावरण बदलाव के कारण इस क्षेत्र में छोटी झीलों के जल प्रसार परिवर्तन पर कड़ी निगरानी बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। अचानक और अक्सर विनाशकारी बाढ़ तब आती है जब ग्लेशियल झीलें अपने प्राकृतिक मोराइन बांधों को तोड़ देती हैं। सी.डब्ल्यू.सी. के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इन दूरदराज क्षेत्रों में स्थित झीलों पर नजर रखने के लिए आयोग द्वारा उन्नत उपग्रह प्रौद्योगिकी, विशेष रूप से सेंटिनल-1 सिंथैटिक एपर्चर राडार (एस.ए.आर.) और सेंटिनल-2 मल्टीस्पैक्ट्रल इमेजरी का प्रयोग किया जा रहा है जो सटीक और सभी मौसम की निगरानी को सक्षम बनाता है। उन्होंने बताया कि यह निगरानी तकनीक इन उच्च जोखिम वाली झीलों की स्थिति का समय पर अपडेट प्रदान करने में सक्षम है।

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