Edited By Sunita sarangal, Updated: 31 Mar, 2025 11:32 AM
देवी ढक्का मंदिर के अलावा पास स्थित राधा-कृष्ण मंदिर, शिव मंदिर और अन्य देवी देवताओं के मंदिर भी खंडहर हो चुके हैं।
राजौरी(शिवम बक्शी): आतंकवाद के काले दौर में खंडहर बने मंदिर अब पुनर्जीवित हो रहे हैं। राजौरी जिले के थन्नामंडी कस्बे में 4 दशक बाद देवी ढक्का मंदिर में नवरात्र के अवसर पर भक्तों के जयकारे गूंज रहे हैं। 1990 के बाद आतंकवाद के कारण हिंदू परिवारों का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था, जिससे क्षेत्र के कई प्राचीन मंदिर खंडहर में तब्दील हो गए थे। अब हालात बदलने के साथ ही श्रद्धालु फिर से इन मंदिरों की ओर लौट रहे हैं।
इतिहास और संघर्ष की कहानी
थन्नामंडी कभी दूध की मंडी के रूप में प्रसिद्ध था और यहां हिंदू परिवारों की बड़ी संख्या निवास करती थी। महाराजा गुलाब सिंह ने 1846 में देवी ढक्का मंदिर का निर्माण कराया था। 1947, 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों तथा 1990 के दशक में आतंकवाद के कारण हिंदू परिवारों को मजबूरी में पलायन करना पड़ा। इस पलायन के चलते मंदिरों की देखरेख करने वाला कोई नहीं बचा और वे धीरे-धीरे खंडहर में तब्दील हो गए। कुछ मंदिरों की भूमि पर अवैध कब्जे भी हो गए, जिन्हें छुड़ाने के लिए अब प्रयास तेज किए जा रहे हैं।
श्रद्धालुओं की वापसी, मंदिरों का पुनर्निर्माण बदलते हालात के साथ राजौरी और अन्य क्षेत्रों में बसे हिंदू परिवार फिर से इन मंदिरों की ओर रुख कर रहे हैं। रविवार को प्रथम नवरात्र पर देवी ढक्का मंदिर में भव्य सत्संग और भंडारे का आयोजन किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। मंदिर की मरम्मत का कार्य भी जारी है और जल्द ही यहां नियमित पूजा-अर्चना के लिए पुजारी नियुक्त किया जाएगा। मंदिर समिति के अनुसार अब मंदिर में सी.सी.टी.वी. कैमरे भी लगाए जाएंगे ताकि सुरक्षा बनी रहे और मंदिर की संपत्ति की रक्षा हो सके।

खंडहर से आस्था के केंद्र तक
देवी ढक्का मंदिर के अलावा पास स्थित राधा-कृष्ण मंदिर, शिव मंदिर और अन्य देवी देवताओं के मंदिर भी खंडहर हो चुके हैं। इनमें शिवलिंग टूट चुके हैं और मूर्तियां नहीं हैं। पलायन कर चुके परिवारों के सदस्य अब इन मंदिरों को फिर से आबाद करने के प्रयास में जुटे हैं। हाल ही में स्थानीय प्रशासन और सामाजिक संगठनों ने भी इस पुनर्निर्माण अभियान में सहयोग देने का आश्वासन दिया है।
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सिद्ध संतों का गहरा संबंध
इस स्थान से कई सिद्ध संतों का गहरा संबंध रहा है। 1800 में बाबा बालक दास जी ने यहां पूजा शुरू की थी, जिनके बाद बाबा गोवर्धन दास जी और फिर बाबा दुर्गा दास जी ने इस मंदिर की सेवा की। इसके बाद पंडित बंसीलाल जी ने वर्षों तक इस मंदिर में पूजा-अर्चना की।
मंदिर में विराजमान प्राचीन मूर्तियां
इस मंदिर में कई प्राचीन और पवित्र मूर्तियां शामिल हैं, जिनमें माता रानी कलकत्ते वाली, बाबा नारसिंह जी, शेरा वाली माता और बाबा काली वीर जी की मूर्तियां प्रमुख हैं। माता रानी कलकत्ते वाली का जो भी चढ़ावा होता था वह कलकत्ता जाया करता था। इन देवस्थानों की पुनर्स्थापना से क्षेत्र में धार्मिक आस्था को और बल मिलेगा।

प्राचीन बावली का पुनर्निर्माण
राधा-कृष्ण और शिव मंदिर के पास एक प्राचीन बावली भी स्थित है, जिस पर आज भी उसी दशक की चित्रकारियां बनी हुई है। जिसे मंदिर समिति के सदस्यों ने पुनर्निर्मित करने की योजना बनाई है। इस बावली का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व रहा है, और इसके पुनरुद्धार से क्षेत्र के धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। मंदिर समिति के सदस्य संगीत गंडोत्रा ने बताया कि 32 सालों बाद जब वे इस बावली पर गए, तो उनकी पुरानी यादें ताजा हो गईं और उनकी आँखें नम हो गईं।
भविष्य की योजनाएं मंदिर
समिति के सदस्य संगीत गंडोत्रा, नवनीत कुमार, रोहित गंडोत्रा, संजय शर्मा और अशोक मेहता ने बताया कि देवी ढक्का मंदिर के पुनर्निर्माण के बाद अब अन्य मंदिरों के जीर्णोद्धार की तैयारी की जा रही है। जल्द ही मंदिरों की खोई हुई रौनक लौटेगी। इस बार नवरात्र के पवित्र अवसर पर जागरण और रामनवमी पर शोभायात्रा निकालने की भी योजना बनाई जा रही है। साथ ही मंदिर परिसर में एक धर्मशाला और भंडारा स्थल भी बनाने की योजना पर विचार किया जा रहा है।

प्रशासन की सक्रियता
उप मंडल मजिस्ट्रेट आबिद हुसैन शाह ने भी रविवार को इस मंदिर का दौरा किया और मंदिर समिति के सदस्यों से मिलकर शौचालय निर्माण और आ रही अन्य बाधाओं को दूर कर निर्माण कार्य शुरू करने का आश्वासन दिया।
आस्था की नई शुरुआत
चार दशकों बाद इन मंदिरों में फिर से श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ना एक सकारात्मक संकेत है। यह न केवल धार्मिक पुनर्जागरण का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक सौहार्द की मिसाल भी पेश करता है। बदलते समय के साथ उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही थन्नामंडी के मंदिर अपनी पुरानी गरिमा वापस पा लेंगे।

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