Jammu Kashmir Election : सियासी उठापटक के बीच दल बदलू नेताओं की लगी मौज

Edited By Sunita sarangal, Updated: 21 Aug, 2024 01:02 PM

party change leaders have benefit for party change

पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की ओर से पेबलीसाइट फ्रंट के गठन और तत्कालीन केंद्र सरकार ने उन्हें 22 साल जेल में रखा।

जम्मू-कश्मीर: देश की आजादी के समय से लेकर मौजूदा समय तक जम्मू-कश्मीर में नेता पाला बदलते रहे हैं। कश्मीर में सियासी दल अपने कुनबे को नहीं संभाल पाए जबकि अवसरवादी नेता दल बदल-बदल कर राजनीतिक लाभ लेते रहे। नैशनल कांफ्रेंस क्षेत्रीय राजनीतिक दल भी अछूता नहीं रहा और कुछ नेताओं ने ही पाला बदला, जबकि अधिकांश जुड़े रहे। हालांकि 2014 में डॉ. फारूक अब्दुल्ला के जीजा स्वर्गीय जी.एम. शाह ने विद्रोह कर सरकार गिरा दी और मुख्यमंत्री बने। लोकसभा सांसद सैफुद्दीन सोज के वोट से अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार 1 वोट से गिर गई और बाद में फिर वह कांग्रेस में शामिल हो गए।

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कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस का रिश्ता 1947 से चला आ रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की ओर से पेबलीसाइट फ्रंट के गठन और तत्कालीन केंद्र सरकार ने उन्हें 22 साल जेल में रखा। आखिरकार 1975 में कांग्रेस ने अपने विधायकों को नेकां में भेज उन्हें मुख्यमंत्री बनाया। उसके बाद डॉ. फारूक अब्दुल्ला और स्वर्गीय राजीव गांधी और नई पीढ़ी में उमर-राहुल के बीच राजनीतिक सरगर्मियां रहती हैं। हाल ही में लोकसभा चुनावों में इंडिया गठबंधन के तहत जम्मू संभाग में नेकां ने कांग्रेस उम्मीदवारों को समर्थन दिया और कश्मीर में नेकां उम्मीदवारों को कांग्रेस ने।

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पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय मुफ़्ती मोहम्मद सईद कांग्रेस छोड़ जनता दल में गए और केंद्रीय गृहमंत्री बने। जनता दल के टूटने के बाद फिर कांग्रेस में लौटे और वर्ष 1999 में अपनी पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया। सेल्फ रूल का नारा देकर मुफ्ती ने कश्मीर के आवाम को अपने साथ जोड़ा और 2002 में कम सीटें आने के बावजूद मुख्यमंत्री बने। हालांकि कांग्रेस ने 2005 में मुख्यमंत्री का पद अपने पास रख लिया। बताया गया कि रोटेशनल सी.एम. के आधार पर गठबंधन बना था। वर्ष 2014 में पी.डी.पी. और भाजपा के गठबंधन की सरकार बनी जो वर्ष 2018 तक चली। अनुच्छेद 370 के 5 अगस्त 2019 को हटाए जाने के बाद पी.डी.पी. में बगावत का दौर शुरू हो गया और जो दूसरे दलों से नेता आए थे, एक-एक करके पार्टी छोड़ते चले गए। अब वही लोग बचे जो मुफ्ती परिवार के करीब थे या रिश्तेदार थे। पार्टी छोड़ने वालों में अब्दुल हक खान मंत्री, जफर हुसैन, चौधरी जुल्फीकार, शुजात बुखारी, इमरान रजा अंसारी, रफी मीर इत्यादि शामिल हैं।

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नेकां छोड़ भाजपा में आए सत शर्मा प्रदेश प्रधान, कांग्रेस छोड़ आए पूर्व मंत्री शाम लाल शर्मा उपप्रधान, नेकां छोड़ आए सुरजीत सिंह सलाथिया और डॉ. जितेन्द्र सिंह के सगे भाई देवेन्दर राणा जो उमर के बहुत करीबी रहे, पार्टी छोड़ भाजपा में शामिल हुए और महत्वपूर्ण पद हासिल किया। पी.डी.पी. छोड़ अपने राजनीतिक दल का गठन करने वाले प्रभावशाली नेता सईद मोहम्मद अल्ताफ बुखारी में पी.डी.पी., कांग्रेस एवं छोटे दलों के नेता शामिल हुए। उनके राजनीतिक दल का गठन 2019 के बाद हुआ। पिछले लोकसभा चुनावों में उन्होंने कश्मीर के राजनीतिक दल पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद लोन के साथ किया, परन्तु लोन हार गए। अब विधानसभा चुनावों का बिगुल बजने के साथ ही अवसरवादी नेता खिसकने लगे हैं। हाल ही में पूर्व मंत्री चौधरी जुल्फीकार भाजपा में शामिल हुए हैं। लोकसभा चुनाव में अनंतनाग-राजौरी सीट पर चुनाव लड़ने वाले जफर इकबाल मन्हास जिन्होंने 1 लाख के करीब वोट लिए, दूसरे दल में जाने को तैयार हैं। बताया जा रहा है कि वह कांग्रेस में शामिल होंगे।

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पूर्व मुख्यमंत्री एवं देश के बड़े पदों पर रहे गुलाम नबी आजाद की पार्टी भी विघटन से अछूती नहीं रही। जिस ढंग से गुलाम नबी आजाद ने जम्मू-कश्मीर में विकास करवाया, उससे सभी परिचित हैं। उनकी पार्टी ने लोकसभा चुनावों में उम्मीदवार नहीं उतारे। लेकिन उससे पहले ही उनके करीबी रहे पूर्व उपमुख्यमंत्री तारा चंद उन्हें छोड़ कर कांग्रेस में चले गए। अभी कुछ दिन पहले एक और प्रभावशाली नेता ताज मोहियुददीन ने भी आजाद की पार्टी को छोड़ कांग्रेस में शामिल होने जा रहा हैं। आजाद सरकार में मंत्री रहे ताज मोहियुद्दीन केरन से एस.टी. सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। पैंथर्स पार्टी के नेता जो कभी मंत्री बने, कांग्रेस में चले गए। अब चूंकि विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है और प्रदेश में 9 एस.टी. और 7 एस.सी. वर्ग के लिए सीटें आरक्षित रखीं हैं और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन भी हुआ है। ऐसे में राजनीतिक हालात को भांपते हुए छोटे दलों से नेताओं का आना-जाना और तेज होगा।

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