वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को लेकर जम्मू-कश्मीर में गरमाई सियासत, मुख्य धर्मगुरु ने दी यह चेतावनी

Edited By Sunita sarangal, Updated: 10 Aug, 2024 10:40 AM

jammu kashmir politics heats up over waqf board amendment bill

मीरवाइज ने कहा कि प्रस्तावित विधेयक में किसी व्यक्ति को अपनी संपत्ति वक्फ करने के लिए कम से कम पांच साल तक मुस्लिम होना जरूरी है, जो हास्यास्पद है।

श्रीनगर(मीर आफताब): ऐतिहासिक जामा मस्जिद श्रीनगर में शुक्रवार को बड़ी सभा को संबोधित करते हुए मीरवाइज-ए-कश्मीर मौलवी उमर फारूक ने कहा कि जैसा कि लोगों को पता है कि भारत सरकार द्वारा मुस्लिम वक्फ बोर्ड कानून में बदलाव का मामला पिछले कुछ दिनों से चर्चा में है।

जारी एक बयान में मीरवाइज ने कहा कि भारत सरकार ने वक्फ अधिनियम में संशोधन करने और वक्फ के संचालन और विनियमन के तरीके में व्यापक बदलाव लाने के लिए संसद में एक विधेयक पेश किया है, जिससे भारत और स्वाभाविक रूप से मुस्लिम बहुल जम्मू और कश्मीर में मुसलमानों को बहुत पीड़ा और चिंता हो रही है, जहां हमारी अधिकांश मस्जिदें, दरगाहें, खानकाह वक्फ बोर्ड के अंतर्गत आते हैं। बोर्ड की संरचना में बदलाव समेत कई विवादास्पद प्रावधान प्रस्तावित किए गए हैं। अब गैर मुस्लिमों को भी बोर्ड का हिस्सा बनाया जाएगा और गैर मुस्लिम को बोर्ड का सी.ई.ओ. भी बनाया जा सकता है, जो धार्मिक मामलों में सीधा हस्तक्षेप है। 

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मीरवाइज ने कहा कि प्रस्तावित विधेयक में किसी व्यक्ति को अपनी संपत्ति वक्फ करने के लिए कम से कम पांच साल तक मुस्लिम होना जरूरी है, जो हास्यास्पद है। इसके अलावा अब जिला कलेक्टर वक्फ भूमि की अंतिम स्थिति पर विवाद की स्थिति में फैसला लेंगे कि वह वक्फ संपत्ति है या सरकारी भूमि। जब से यह सरकार सत्ता में आई है, मस्जिदों को लेकर कई विवाद पैदा हो गए हैं और जब तक विवाद सुलझ नहीं जाता, तब तक भूमि सरकारी भूमि मानी जाएगी। यह "उपयोग द्वारा वक्फ" की अवधारणा को भी खत्म करना चाहती है। सैंकड़ों वक्फ मस्जिदें सदियों पुरानी हैं और कुछ के पास इसे साबित करने के लिए दस्तावेज नहीं हैं, फिर वे सभी सरकारी भूमि पर मानी जाएंगी। 

मीरवाइज ने कहा कि दुर्भाग्य से इस सरकार का एजेंडा मुसलमानों को कमजोर करना और उन्हें चुनावी उद्देश्यों के लिए ध्रुवीकरण एजेंट के रूप में इस्तेमाल करना है। मीरवाइज ने कहा कि मुसलमानों के तौर पर उन्हें इन चालबाजियों के प्रति सतर्क रहने और अपने हितों की यथासंभव रक्षा करने की जरूरत है। अगर सरकार इन भेदभावपूर्ण कानूनों को आगे बढ़ाती है तो जम्मू-कश्मीर के मुसलमान इसका विरोध करेंगे। वे इस मुद्दे पर बारीकी से नजर रख रहे हैं और अगली मुताहिदा मजलिस-ए-उलेमा (एम.एम.यू.) बैठक में इसे उठाएंगे।
 

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