Kashmir की बदली फिजा में चुनाव बने चुनौती, Omar Abdullah ने टोपी उतार हाथ जोड़कर...

Edited By Neetu Bala, Updated: 05 Sep, 2024 07:22 PM

elections become a challenge in the changed atmosphere of kashmir

ऐसा पहली बार हुआ है कि अब्दुल्ला परिवार को अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए ऐसा कदम उठाना पड़ा है।

श्रीनगर/जम्मू : जम्मू-कश्मीर की राजनीति में सबसे बड़े सियासी दल नैशनल कॉन्फ्रैंस के उपप्रधान एवं पूर्व मुख्यमंत्री रहे उमर अब्दुल्ला ने परिवार की पारंपरिक सीट गांदरबल से चुनाव लड़ने के लिए नामांकन पत्र भर दिया। गांदरबल में उमर अब्दुल्ला 2008 में चुनाव जीते और मुख्यमंत्री बने थे परन्तु 2014 के चुनावों में बीरवाह में कम अंतर से चुनाव जीत पाए, जबकि श्रीनगर के सोनवार से पी.डी.पी. उम्मीदवार से चुनाव हार गए थे।

लोकसभा चुनावों में भारी मतदान और कश्मीर में बदले हालात में मतदाता किस करवट रुख करें, उसे भांपते हुए उमर अब्दुल्ला ने अपना नामांकन पत्र भरने के बाद जनता से अपनी टोपी उतार हाथ जोड़ कर उन्हें विजयी बनाने की फरियाद की।

ऐसा पहली बार हुआ है कि अब्दुल्ला परिवार को अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए ऐसा कदम उठाना पड़ा है। हालांकि इसे कश्मीर की संस्कृति में मान-मनुहार भी माना जाता है।

गांदरबल में नामांकन भरने के बाद कार्यकर्त्ताओं को संबोधित करते हुए उमर ने कहा कि उन्हें एक मौका दें ताकि वह गांदरबल के लोगों की सेवा कर सकें। अपनी टोपी उतार कर उन्होंने कहा कि मेरी टोपी, मेरी पगड़ी और मेरा सम्मान अब आपके हाथ में है। भावुक अंदाज में उन्होंने जब मतदाताओं से फरियाद की तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले चुनाव में उन्हें कड़े मुकाबले से गुजरना पड़ेगा।

उमर ने कहा कि वह एक डोर को पकड़े रखें और उन्हें जीत जरूर मिलेगी। उमर अब्दुल्ला की इसलिए भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं क्योंकि गठबंधन के बावजूद कांग्रेस के एक नेता यहां से चुनाव लड़ सकते हैं जबकि जमात-ए-इस्लामी नेता सारजन बरकाती भी यहां से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं जिनका पहले नामांकन जैनापोरा से दस्तावेजों की कमी के कारण खारिज हो गया था। अगर इस बार उनका नामांकन सही पाया जाता है तो मुकाबला और रोचक होगा।

गांदरबल सीट में इस बार 1,26,746 मतदाता हैं जबकि वर्ष 2014 में 90,617 मतदाता थे। उस समय नैकां के उम्मीदवार इश्फाक अहमद शेख ने पी.डी.पी. के उम्मीदवार काजी मोहम्मद अफजल को लगभग 597 वोटों से हराया था।

वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा के शेख अब्दुल रशीद को मात्र 671 वोट मिले और कुल 13 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। कांग्रेस को 3190 जबकि एक निर्दलीय शेख गुलाम अहमद को 6009 वोट मिले। अब विधानसभा में 36,129 मतदाता बढ़ गए हैं जिनमें 4513 युवा हैं जो 18 वर्ष की आयु के हैं।

8 बार नैकां ने जीती सीट

गांरदबल सीट पर नैशनल कॉन्फ्रैंस का 8 बार कब्जा रहा है जबकि 1 बार पी.डी.पी. और 2 बार कांग्रेस ने यहां से चुनाव जीता। पहला चुनाव नैकां के गुलाम अहमद सोफी ने 1957 में जीता था लेकिन 1967 के चुनावों में कांग्रेस ने गांदरबल सीट नैकां से छीन ली और 1972 के चुनावों में भी सीट को बरकरार रखा। परन्तु 1977 में उमर अब्दुल्ला के दादा शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने गांदरबल से चुनाव लड़ा और विजयी बने। उनके बाद डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने 1983, 1987 और 1996 में चुनाव जीता। वर्ष 2002 में पी.डी.पी. के काजी मोहम्मद अफजल ने सीट जीत ली। लेकिन वर्ष 2008 में उमर अब्दुल्ला और 2014 में नैकां के इश्फाक अहमद शेख चुनाव जीते।

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