Reservation को लेकर राजनीति घमासान, उप समिति पर टिकी सबकी निगाहें

Edited By Neetu Bala, Updated: 01 Jan, 2025 07:35 PM

political uproar over reservation all eyes on the sub committee

जम्मू और कश्मीर में आरक्षण व्यवस्था को लेकर एक गहरे और जटिल राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन चुका है

जम्मू डेस्क: जम्मू और कश्मीर में आरक्षण ( Reservation) व्यवस्था को लेकर एक गहरे और जटिल राजनीतिक विमर्श का हिस्सा बन चुका है, जिसमें विभिन्न दलों और सामाजिक संगठनों के बीच मतभेद हैं। एक ओर जहां सत्तारूढ़ दल इसे राजनीतिक मुद्दा मानते हुए आरक्षण व्यवस्था में बदलाव के विरोधी हैं, वहीं विपक्षी दल और कुछ सामाजिक संगठन इसे वर्ग आधारित न्याय सुनिश्चित करने के रूप में देख रहे हैं।

एसओ 176 और आरक्षण की व्यवस्था: जम्मू और कश्मीर में आरक्षण की व्यवस्था को लेकर 15 मार्च 2024 का एसओ 176 महत्वपूर्ण है, जो प्रदेश में आरक्षण के ढांचे को परिभाषित करता है। इसका उद्देश्य विभिन्न समुदायों को उनके हक का लाभ दिलाना है।

ओपन मेरिट की चिंता: कई लोग ओपन मेरिट के तहत सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के अधिकारों को लेकर चिंतित हैं। उनका कहना है कि आरक्षण की व्यवस्था ओपन मेरिट के अवसरों को सीमित कर सकती है, जिससे समाज के सामान्य वर्ग को नुकसान हो सकता है।

सत्तारूढ़ पक्ष और विपक्ष का दृष्टिकोण: आगा रुहुल्ला मेहदी और वहीद पर्रा जैसे नेता मौजूदा आरक्षण व्यवस्था में बदलाव की बात कर रहे हैं, जबकि बीजेपी इसे राजनीतिक मुद्दा मानती है और समाज को बांटने की कोशिश मानती है। भाजपा का दावा है कि यह मुद्दा मुख्य रूप से राजनीतिक दलों द्वारा उठाया जा रहा है और आरक्षण का प्रश्न अधिकतर राजनीतिक लाभ लेने के लिए उठाया जा रहा है।

सामाजिक संगठनों की भूमिका: सामाजिक संगठनों का कहना है कि आरक्षण की व्यवस्था में सुधार की जरूरत है और आरोप लगाते हैं कि राजनीतिक दल इस व्यवस्था को कमजोर कर रहे हैं।

जातीय जनगणना का मुद्दा: जातीय जनगणना को इस मुद्दे का समाधान माना जा रहा है, क्योंकि इससे सही आंकड़े प्राप्त हो सकते हैं और आरक्षण की नीति को और ज्यादा उचित और प्रभावी बनाया जा सकता है। बिहार की तर्ज पर जातीय जनगणना करवाने का प्रस्ताव भी उठाया गया है। इस प्रक्रिया से यह पता चल सकेगा कि समाज के किस वर्ग को कितनी मदद की आवश्यकता है, और किसे किस प्रकार का आरक्षण मिलना चाहिए।

राजनीतिक विवाद: आरक्षण के इस मुद्दे पर राजनीतिक घमासान जारी है, जिसमें सभी दल अपने-अपने तर्कों के साथ सामने आ रहे हैं। यह स्पष्ट है कि यह केवल एक नीति बदलाव का मुद्दा नहीं है, बल्कि एक गहरी सामाजिक और राजनीतिक चुनौती है।

सामाजिक न्याय और समानता सुनिश्चित करने के लिए आरक्षण एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन यह भी सही है कि इसे लागू करने के तरीके में राजनीतिक दलों और संगठनों के बीच मतभेद हैं। आने वाले समय में इस पर अधिक चर्चा और निर्णय हो सकते हैं।

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