Edited By Neetu Bala, Updated: 13 Jul, 2025 06:52 PM

13 जुलाई के दिन को 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 की समाप्ति से पहले तक शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता था
जम्मू : 13 जुलाई 1931 के इतिहास पर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का दर्द रविवार को खूब छलका। अपने सोशल मीडिया पोस्ट पर मुख्यमंत्री ने कहा कि कश्मीर में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करते हुए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले लोगों को खलनायक बताया जा रहा है। शर्म की बात है कि सच्चे नायकों को मुस्लिम होने की वजह से खलनायक की तरह पेश किया जा रहा है। दरअसल 2019 में अनुच्छेद 370 की समाप्ति और राज्य के पुनर्गठन के बाद 13 जुलाई को जम्मू-कश्मीर में मनाए जाने वाले शहीदी दिवस के अवकाश को रद्द कर दिया गया था।
नैशनल कांफ्रैंस और पीपुल्स डैमोक्रैटिक पार्टी 13 जुलाई को जम्मू-कश्मीर में अवकाश की मांग कर रही हैै। ऐसे में जम्मू-कश्मीर में 13 जुलाई पर राजनीति गर्माई हुई है। कश्मीर केंद्रित पार्टियां इस मुद्दे को अपने हिसाब से भुनाने में लगी हुई हैं। मामले को गर्माता देख मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कश्मीर के लोगों का समर्थन बनाए रखने के लिए एक कदम आगे निकलते हुए मोदी सरकार और उप-राज्यपाल प्रशासन का नाम लिए बिना कहा कि हमें हमारे नायकों की कब्रों पर जाने का मौका नहीं दिया गया लेकिन हम उनके बलिदानों को कभी नहीं भूलेंगे।
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उनका कहना है कि 13 जुलाई 1931 को कश्मीर में ब्रिटिश शासन लागू था। ऐसे में ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करते हुए गोलियों का शिकार हुए लोग हमारे नायक हैं। उन्होंने 13 जुलाई की घटना की तुलना जलियांवाला बाग से की है।
उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में 13 जुलाई के दिन को 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 की समाप्ति से पहले तक शहीदी दिवस के रूप में मनाया जाता था और राजकीय अवकाश भी रहता था। 13 जुलाई 1931 को श्रीनगर में डोगरा शासन के खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शन में 22 प्रदर्शनकारियों की जान चली गई थी।
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